"ଝଣ୍ଡେୱାଲାନ ମନ୍ଦିର" ପୃଷ୍ଠାର ସଂସ୍କରଣ‌ଗୁଡ଼ିକ ମଧ୍ୟରେ ତଫାତ

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== ଇତିହାସ ଓ କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ==
୧୮ ଶ ଶତାବ୍ଦୀରେ ଏହି ଅଞ୍ଚଳ ବଣ ଜଙ୍ଗଲ ରେଜଙ୍ଗଲରେ ଭରା ଥିଲା । ଏଠାକୁ ଆରାବଳି ପର୍ବତ ଅଞ୍ଚଳ କୁ ଲାଗି ଥିବା ଅରନ୍ୟାଞ୍ଚଳ ବ୍ୟାପ୍ତ ହେଇଥିଲା । କିମ୍ବଦନ୍ତୀ ଅନୁସାରେ ଚାନ୍ଦିନୀ ଚୌକର ଜଣେ ଧର୍ମ ପ୍ରାଣ ବ୍ୟବସାୟୀ ବଦ୍ରିଦାସ ଏହା ନିକଟସ୍ଥ ଏକ ଝରଣା କୁଳରେ ଏକ ପ୍ରାଚୀନ ମନ୍ଦିର ଦବି ରହିଥିବାର ସ୍ଵପ୍ନାଦେଶ ପାଇଥିଲେ ।<ref>झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वाीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है । आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे । अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था । इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे । ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपडा व्यपारी श्री बद्री दास भी थे । श्री बद्री दास धाार्मिक वॄत्ति के व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे । वे नियमित रूप से इस पहाडी स्थान पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे । एक बार ध्यान में लीन श्री बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक चश्में के पास स्थित एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है । पुनः एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पडा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है । इस अनोखी अनुभूति के बाद श्री बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी । यह एक देवी की मूर्ति थी परंतु खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूार्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी</ref><ref><nowiki>http://jhandewalamandir.com/OurHistory.aspx</nowiki></ref> ସେ ସେଠାରେ ଖୋଦନ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାରୁ ଗଭୀର ଗୁମ୍ଫା ମଧ୍ୟରେ ଦେବୀ ମୂର୍ତି ପ୍ରାପ୍ତ ହେଇଥିଲେ । ଖୋଦନ ସମୟରେ ଦେବୀ ପ୍ରତିମୂର୍ତିର ହାତ ଖଣ୍ଡିତ ହେଇଗଲା । ତାହାକୁ ରୋପ୍ୟ ହାତ ଲଗେଇ ସେହିଠାରେ ସ୍ଥାପନ କଲେ ଓ ଉପର ଅଂଶରେ ଏକ ନୂତନ ମୂର୍ତି ନିର୍ମିତ କରି ମନ୍ଦିର ନିର୍ମାଣ କଲେ ।